Tuesday 17 September 2013

आराध्य


नयनो में  दीप्त होते अटल अमर दो तारे 
जो कहते हम पा सकते लक्ष्य हमारे 
अधरों पर छाती है जब निर्मल निश्छल मुस्कान 
वो मिटा देती है जीवन श्रम की कातरता व थकान 
विचारों में है आथाह सगर सी गंभीरता 
जो हरती मेरे चंचल चपल मन की अधीरता
वाणी से छलकता वो हृदय के भीतर का विश्वास 
जो दूर करता संदेह व जीवन के उच्छ्वास 
दर्श में सिमट आती वसुधा की खुशियाँ सारी 
जो अनुभूति कराती है वात्सल्यपूर्ण  है सृष्टि हमारी

व्यक्तिव में है एक  अद्भुत (अदभुत ) चुम्बकीय  आकर्षण 
जो हृदय में हमारे करता उनके प्रति श्रद्धा उत्पन्न 
यदि मुझसे कोई पूछे कि कैसी होगी 
तुम्हारे आराध्य की सजीव मूरत 
तो पता है मुझे, प्रकट होगी नयन पटल पे 
उनकी ही अटल, अमर नयनाभिराम मूरत!!