Friday 22 July 2011

"कोशिश" ----:(शुचिता वत्सल)

शिखर तो छू लिए होते 
गर गगन की कल्पना की होती,
गागर तो भर ही जाती 
गर सागर की अभिलाषा करी होती,
फूल तो मिल ही जाते 
मधुबन  की कामना की होती,
पगडण्डी भी पा ही लेते 
गर मंजिल की रहे खोजी होती ,
कुटिया तो बन ही जाती
गर महलों की इच्छा की होती,
तारा तो पा ही लेते गर 
चाँद की आकांक्षा रखी होती,
दीप की ज्योति मिल ही जाती 
गर दिनकर की किरणें चाही होती,
नन्हा तृण तो पा ही लेते 
गर नीड़ की आशा की होती ,
हम भी मंजिल पा जाते 
अगर "कोशिश की होती" !!




आहूति (Aahooti) by Shuchita.

प्रेम को नफरत में बदल देता है यह जहाँ ,
जिस हृदय की भूमि पर विश्वास उपजता हो
शक के बीज बो देता है ये वहां |
श्रद्दा के मंदिर में ,
प्रेम के अमृत में ,
अविश्वास का  ज़हर मिला देता है ये जहाँ,
जीने का सहारा,
दिल का सकूं,
सब तो छीन लेता है ये कठोर जहाँ !
प्रेम को क्रोध का रूप देना,
आस्था को डिगाना ,
रिश्तों को व्यापार बतलाना 
सभी में पारंगत है ये जहाँ !
कुछ करना है तो दुनिया दारी के खेल में न फसें  
स्वयं को,स्वयं के अहम को, निष्ठा की ज्वाला में आहूत करें
तभी श्रद्दा , विश्वास , आस्था के बंधन निभा पाएंगे 
तभी मानव जीवन को सबल व समर्थ बना पाएंगे !