Friday, 22 July 2011

"कोशिश" ----:(शुचिता वत्सल)

शिखर तो छू लिए होते 
गर गगन की कल्पना की होती,
गागर तो भर ही जाती 
गर सागर की अभिलाषा करी होती,
फूल तो मिल ही जाते 
मधुबन  की कामना की होती,
पगडण्डी भी पा ही लेते 
गर मंजिल की रहे खोजी होती ,
कुटिया तो बन ही जाती
गर महलों की इच्छा की होती,
तारा तो पा ही लेते गर 
चाँद की आकांक्षा रखी होती,
दीप की ज्योति मिल ही जाती 
गर दिनकर की किरणें चाही होती,
नन्हा तृण तो पा ही लेते 
गर नीड़ की आशा की होती ,
हम भी मंजिल पा जाते 
अगर "कोशिश की होती" !!




1 comment:

  1. I am no authority to comment on such a beautiful poetry Shuchita! The rhyme and reason are so endearing. The essence and affection of each line is manifesting or evoking the very title of the Poem "KOSHISH" !!!

    Brilliant is too little a word! Congrats

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