शिखर तो छू लिए होते
गर गगन की कल्पना की होती,
गागर तो भर ही जाती
गर सागर की अभिलाषा करी होती,
फूल तो मिल ही जाते
मधुबन की कामना की होती,
पगडण्डी भी पा ही लेते
गर मंजिल की रहे खोजी होती ,
कुटिया तो बन ही जाती
गर महलों की इच्छा की होती,
तारा तो पा ही लेते गर
चाँद की आकांक्षा रखी होती,
दीप की ज्योति मिल ही जाती
गर दिनकर की किरणें चाही होती,
नन्हा तृण तो पा ही लेते
गर नीड़ की आशा की होती ,
हम भी मंजिल पा जाते
अगर "कोशिश की होती" !!