क्या भारत "कुछ" लोगों का है??
क्या वक़्त अभी सोने का है??
हम दर्द अगर महसूस करें,
पीड़ा सेना की, समझ सकें...
तो खुद को रोक ना पायेंगे
और बात समझ ही जायेंगे
यह मौत का खेल, यूँ वीरों से,
आतंकी करे...या पाक करे…
यह वीर हमारे अपने थे
भारत माँ के रत्नों में थे
कुछ नेता कहते-"शांत रहो
और गीत मैत्री के गाते रहो...
यूँ ही वीरों को लुटाते रहो...
हम गीत मैत्री के गायेंगे
खुद शांतिदूत बन,
भारत माँ के बेटों की,भेट चढ़ायेंगे"
बहता जो खून रगों में है,
खून नहीं है... पानी है...
सत्ता लोलुप लोगों के लिए,
ये बस हार जीत की कहानी है...
जीवन का क्या?? लुट जाने दो..
सत्ता ना उन्हें गवानी है...
अब डोर छीन लें इनसे हम
अस्मत भारत माँ की बचानी है…
जो जान शहीदों ने दी है
वो भेट नहीं, कुर्बानी है...
अमन की झूठी आस नहीं
ज्योत सरफरोशी की दिलों में जलानी है...
ये देश नहीं "कुछ" लोगों का
ये वक़्त नहीं अब सोने का!!