Wednesday, 3 November 2010

"Viniti"







हूँ मैं मृदु रेणु 
हो शिल्पकार तुम मेरे 
मेरे व्यक्तित्व निर्माण के 
हो आधार तुम मेरे 
तुम्हीं पर है निर्भर 
आकार देते तुम क्या मुझे 
दे स्वयं का निर्मल स्पर्श 
चाहे बनाओ मुझे आराध्या की मूर्ति 
या फिर प्रियतमा की छवि 
या प्रदान करो कोई जीवंत आकृति 
मेरे निर्माण में छुपा शिल्प तुम्हारा 
ना दिखलायेगा मेरी प्रवृत्ति 
वो दिखलायेगा सिर्फ तुम्हारी मनोवृत्ति 
मैंने तो ग़ैरों की कल्पना के 
अनुरूप ढालना सीखा 
मैंने तो औरों के सपनों 
को साकार करना सीखा 
मेरा अस्तित्व तुम्हीं पर है निर्भर 
ना करना मेरी प्रतिभा का तुम निरादर 
तुम्हारी कला का पा सहरा 
मैं करूँगी सपना साकार तुम्हारा 
वहीं तुम्हारा क्रूर स्पर्श 
करेगा मेरी मनोरम छवि भी ध्वस्त 
मेरी सिर्फ है एक विनति
चाहे प्रदान करना या 
ना करना तुम्हारी प्रीति 
पर केवल कहना मुझसे 
तुम्हारे हृदय के भीतर का तथ्य
व मन में छुपा हर एक सत्य। 









 A poem close to my heart - I wrote this few years back.. This has request of a girl to her dream partner...Please read & post your comments..