गुस्ताख आवाजो... गुस्ताख निगाहों...अब तो मानना होगा...
विद्रोह नहीं... क्रान्ति है ये...जूनून है ये...
अब तो चिर निंद्रा त्यागो.. अब तो शासकों जागो...
भीड़ नहीं.. देश-की-आवाज़ और जन-समूह है ये...!
तोलते ही रहे वो..सिक्को में, रुपये पैसों में,
मातृभूमि के प्रति हमारे श्रद्धा-विश्वास को...
ढूंढते ही रहे वो, प्रायोजकों को...
सियासती गलियारा नहीं कोई...
मातृभूमि पे न्योछावर होने का प्रण है ये...
अब तो चिर निंद्रा त्यागो.. अब तो शासकों जागो...
मान भी लो भीड़ नहीं जनमत... जन-समूह है ये...
जो उबल रहा... जो बह उठा...रगों में आज...
पानी नहीं... देश-प्रेम का सच्चा-खून है ये...
बेईमानी नहीं...लोभ...लालच...स्वार्थ नहीं...
देश के लिए कुछ कर गुजरने की, आस है ये...
अब तो चिर निंद्रा त्यागो.. अब तो शासकों जागो...
विद्रोह नहीं... क्रान्ति है...जूनून है ये...
भीड़ नहीं जनमत... जन-समूह है ये...
पैरों तले कुचलने का प्रयत्न करनेवालों...
याद रखना फूल नहीं...कांटे है ये...विचारों की तलवारें है ये...
फिर ना दोहराना-नासमझों की टोली है ये...
जनता नासमझ और भोली है ये...
मान भी लो भीड़ नहीं जनमत... जन-समूह है ये..
दीप की शिखा नहीं,जो बुझा लोगे फूँक से
दहकते अंगारे दिलों में है ...चिंगारी है ये...
भूल से भी दे-देना ना हवा कहीं ,
लेलेंगी प्रचंड ज्वाला का रूप ये...
जल उठेंगे कृत्रिम आडम्बर व सियासती सिंघासन
फिर ना दोहराना- क्रांति नहीं विद्रोह है ये...
फिर न कहना नासमझों की टोली है ये...
ना ही कहना-भोली जनता कि बड़ी कोई भूल है ये...
मान भी लो भीड़ नहीं जनमत... जन-समूह है ये...
अब तो चिर निंद्रा को त्यागो.. अब तो जागो...
मान भी लो!! देश के भ्रष्टाचारियों व गद्दारों...!!
विद्रोह नहीं... क्रान्ति है ये...जूनून है ये...
सड़को पे जो उतर आया है आज ...जनाक्रोश है ये...
फिर न कहना नासमझों की टोली है...
भीड़ नहीं..स-उद्देश ससंदेश शांतिपूर्ण जनांदोलन और जन-समूह है ये...
विद्रोह नहीं.. क्रान्ति है...जूनून है ये...
सड़को पे जो उतर आया है आज ...जनाक्रोश है ये...
फिर न कहना नासमझों की टोली है...
भीड़ नहीं..स-उद्देश ससंदेश शांतिपूर्ण जनांदोलन और जन-समूह है ये...
विद्रोह नहीं.. क्रान्ति है...जूनून है ये...