इतना क्यूँ सोते हैं हम ...
इतना लम्बा.. इतना गहरा.. बेसुध क्यूँ सोते हैं हम...दबे पांव काली रातें आती-जाती नहीं
दबे पांव क्या, कभी बेधड़क, हो जाती हैं?
और बस करवट लेकर सब खोते हैं हम..
इतना क्यूँ सोते हैं हम..?
नींद है या फिर नशा है कोई
धीरे धीरे जिसकी आदत पड़ जाती है
झूठ की बारिश में सच की खामोश बांसुरी -२
एक झोखे की, राह देखती सड़ जाती है
बाद में क्यूँ रोते हैं हम
इतना क्यूँ सोते हैं हम ...
खेत हमारा,बीज हमारे, हैरत क्या फसल खड़ी है
काटनी होगी,छांटनी होगी, आज चुनौती बहुत बड़ी है
कांटें क्यों बोते है हम
इतना क्यूँ सोते हैं हम ...
सबने खेला और सब हारे..-२
बड़ा अनोखा अजब खेल है
इंजन कला डिब्बे काले
बड़ी पुरानी रेल है
इस रेल में क्यूँ होते है हम..
इतना क्यूँ सोते हैं हम ...
लोरी नहीं तमाचा दे दो -२
इक छोटी सी आशा दे दो.
वर्ना फिर से,सो जायेंगे हम
वर्ना फिर से,सो जायेंगे हम, सपनो में फिर खो जायेंगे हम...
चलो पाप धोते हैं हम..
इतना लम्बा.. इतना गहरा.. बेसुध क्यूँ सोते हैं हम...
-प्रसून जोशी !
I badly needed this.. Thanks for sharing :)
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