विश्वास
इसे हम शब्दत: संधि विच्छेद कर, देखे तो बनता है- विश्व+आस = संसार की आस|अत: हर कोई विश्वास चाहता है, पर आज के इस आपाधापी के युग मे इसके साथ जो शब्द जुड़ रहा है, वह है "घात"...
इंसान इंसान तो क्या, नास्तिक तो ईश्वर तक पर विश्वास नहीं करने का दावा करते हैं.. वो भी दंभ के साथ |
कम से कम उस परमपिता परमेश्वार पर तो विश्वास करो.. उसने पशु, पेड़, पक्षी सभी बनायें और विश्वास किया इंसान पर कि ये मेरी बनायी प्रकृति की रक्षा करेगा और उसे सुन्दरतम बनायेगा पर इंसान ने उस विश्वास को तोड़ दिया |आज पशु व मनुष्य में मात्र आकृति का अंतर रह गया है वर्ना, वो ही बर्बरता, धूर्तता, छल, स्वार्थ, छीना झपटी..अपनी क्षुधापूर्ति, वो चाहे शरीर की हो या वासना की, उसी में मनुष्य भी आज जुटा रहता है|किसी को किसी पर विश्वास नहीं रहा| इसने सब को त्रस्त कर दिया है |यह विश्वास ही है जो हमें शांति , संतोष, ऊर्जा व आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है..
आज विश्वास ना करना भी एक प्रकार की बीमारी है..
छोटी सी कहानी से समझे-
एक बैलगाड़ी वाले ने एक हाथ में एक मुर्गी पकड़ रखी थी, दूसरे हाथ से बैलगाड़ी की रस्सी पकड़ उसे हाँक रहा था... आगे चला ही था कि उसे एक स्त्री मिली जिसने
उस बैलगाड़ीवाले से गंतव्य तक छोड़ने का अनुरोध किया तथा गाड़ी पर सवार हो गयी..थोड़ी दूर ही चले थे कि स्त्री बोली-" तू मुझे छेड़ेगा"
गाड़ीवाला बोला- "मैं भला क्यों छेड़ूँगा ? और मुख्य बात मेरे एक हाथ में मुर्गी है और दूसरे में रस्सी...मैं भला कैसे छेड़ूँगा?"
स्त्री बोली- "रस्सी को मुंह से दबा देगा, मुर्गी को टोकरी के नीचे दबा देगा...फिर जब तेरे दोनो हाथ खुल जायेंगे..तू मुझे छेड़ेगा "
तो भैया जिन्हें अविश्वास की बीमारी हो..वो कुछ भी कल्पनाकर दूसरे को दुष्ट व धूर्त साबित करने में लग जाते हैं, ऐसों को साथी भी खूब मिल जाते हैं.. यही सब तो विपक्ष कर रहा है मोदी जी के साथ...
भले मानसों देश की नैय्या जब विश्वास करके उन्हें सौपी है तो उसे पार भी लगाने दो...काहे विश्वास के अभाव में दिशा भ्रमित हो उस स्त्री की तरह भ्रम फैला रहे हो.. सतर्क रहना अच्छा है पर सबको एक ही लाठी से हाँकना उचित नहीं..
इसे हम शब्दत: संधि विच्छेद कर, देखे तो बनता है- विश्व+आस = संसार की आस|अत: हर कोई विश्वास चाहता है, पर आज के इस आपाधापी के युग मे इसके साथ जो शब्द जुड़ रहा है, वह है "घात"...
इंसान इंसान तो क्या, नास्तिक तो ईश्वर तक पर विश्वास नहीं करने का दावा करते हैं.. वो भी दंभ के साथ |
कम से कम उस परमपिता परमेश्वार पर तो विश्वास करो.. उसने पशु, पेड़, पक्षी सभी बनायें और विश्वास किया इंसान पर कि ये मेरी बनायी प्रकृति की रक्षा करेगा और उसे सुन्दरतम बनायेगा पर इंसान ने उस विश्वास को तोड़ दिया |आज पशु व मनुष्य में मात्र आकृति का अंतर रह गया है वर्ना, वो ही बर्बरता, धूर्तता, छल, स्वार्थ, छीना झपटी..अपनी क्षुधापूर्ति, वो चाहे शरीर की हो या वासना की, उसी में मनुष्य भी आज जुटा रहता है|किसी को किसी पर विश्वास नहीं रहा| इसने सब को त्रस्त कर दिया है |यह विश्वास ही है जो हमें शांति , संतोष, ऊर्जा व आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है..
आज विश्वास ना करना भी एक प्रकार की बीमारी है..
छोटी सी कहानी से समझे-
एक बैलगाड़ी वाले ने एक हाथ में एक मुर्गी पकड़ रखी थी, दूसरे हाथ से बैलगाड़ी की रस्सी पकड़ उसे हाँक रहा था... आगे चला ही था कि उसे एक स्त्री मिली जिसने
उस बैलगाड़ीवाले से गंतव्य तक छोड़ने का अनुरोध किया तथा गाड़ी पर सवार हो गयी..थोड़ी दूर ही चले थे कि स्त्री बोली-" तू मुझे छेड़ेगा"
गाड़ीवाला बोला- "मैं भला क्यों छेड़ूँगा ? और मुख्य बात मेरे एक हाथ में मुर्गी है और दूसरे में रस्सी...मैं भला कैसे छेड़ूँगा?"
स्त्री बोली- "रस्सी को मुंह से दबा देगा, मुर्गी को टोकरी के नीचे दबा देगा...फिर जब तेरे दोनो हाथ खुल जायेंगे..तू मुझे छेड़ेगा "
तो भैया जिन्हें अविश्वास की बीमारी हो..वो कुछ भी कल्पनाकर दूसरे को दुष्ट व धूर्त साबित करने में लग जाते हैं, ऐसों को साथी भी खूब मिल जाते हैं.. यही सब तो विपक्ष कर रहा है मोदी जी के साथ...
भले मानसों देश की नैय्या जब विश्वास करके उन्हें सौपी है तो उसे पार भी लगाने दो...काहे विश्वास के अभाव में दिशा भ्रमित हो उस स्त्री की तरह भ्रम फैला रहे हो.. सतर्क रहना अच्छा है पर सबको एक ही लाठी से हाँकना उचित नहीं..