Friday, 19 August 2011

विद्रोह नहीं.. क्रान्ति है..जूनून है ये.. अब तो,मान ही लो भीड़ नहीं जनमत.. जन-समूह है ये..!

गुस्ताख आवाजो... गुस्ताख  निगाहों...अब तो मानना होगा...
विद्रोह  नहीं... क्रान्ति  है ये...जूनून  है ये...
अब तो चिर निंद्रा त्यागो.. अब तो शासकों जागो...
विद्रोह  नहीं.. क्रान्ति है....जूनून  है ये...
भीड़ नहीं.. देश-की-आवाज़ और जन-समूह है ये...!


तोलते ही रहे वो..सिक्को में, रुपये पैसों में,
मातृभूमि के प्रति हमारे श्रद्धा-विश्वास को...
ढूंढते ही रहे वो, प्रायोजकों को...
सियासती गलियारा नहीं कोई...
मातृभूमि पे न्योछावर होने का प्रण है ये...
अब तो चिर निंद्रा त्यागो.. अब तो शासकों जागो...
मान भी लो भीड़ नहीं जनमत... जन-समूह  है ये...    

जो उबल रहा... जो बह उठा...रगों में आज... 
पानी नहीं... देश-प्रेम का सच्चा-खून  है ये...
बेईमानी नहीं...लोभ...लालच...स्वार्थ नहीं...
देश के लिए कुछ कर गुजरने की, आस है ये...
अब तो चिर निंद्रा त्यागो.. अब तो शासकों जागो...
विद्रोह  नहीं... क्रान्ति है...जूनून  है ये...
भीड़ नहीं जनमत... जन-समूह  है ये...

पैरों  तले कुचलने का प्रयत्न करनेवालों... 
याद रखना फूल नहीं...कांटे है ये...विचारों की तलवारें है ये...
भूले से भी,अब न कहना-क्रांति नहीं विद्रोह है ये...
फिर ना दोहराना-नासमझों की टोली है ये...
जनता नासमझ और भोली है ये...
मान भी लो भीड़ नहीं जनमत... जन-समूह  है ये..

दीप की शिखा नहीं,जो बुझा लोगे फूँक से 
दहकते अंगारे दिलों में है ...चिंगारी है ये...
भूल से भी दे-देना ना हवा कहीं ,
लेलेंगी प्रचंड ज्वाला का रूप ये...
जल उठेंगे कृत्रिम आडम्बर व सियासती सिंघासन
फिर ना दोहराना- क्रांति नहीं विद्रोह है ये...
फिर न कहना नासमझों की टोली है ये...
ना ही कहना-भोली जनता कि बड़ी कोई भूल है ये...
मान भी लो भीड़ नहीं जनमत... जन-समूह  है ये...

अब तो चिर निंद्रा को त्यागो.. अब तो जागो...
मान भी लो!! देश के भ्रष्टाचारियों व गद्दारों...!!
विद्रोह नहीं... क्रान्ति है ये...जूनून  है ये...
सड़को पे जो उतर आया है आज ...जनाक्रोश है ये...
फिर न कहना नासमझों की टोली है...
भीड़ नहीं..स-उद्देश ससंदेश शांतिपूर्ण जनांदोलन और जन-समूह है ये...
विद्रोह  नहीं.. क्रान्ति है...जूनून है ये... 
मान ही लो भीड़  नहीं जनमत.. जन-समूह  है ये..!!-शुचिता वत्सल 

This is poem that I wrote and which spontaneously came to my mind when I saw the spectacular picture of Awakened India on my Television screen..
Vandematram!!
-Shuchita Vatsal.





18 comments:

  1. Amazing poem.I appreciate your efforts to pen the sentiments down here.Keep it up!!

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  2. Good going. keep coming.

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  3. not fluent in reading hindi,managed to read the whole poem, was amazing! very nice

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  4. Amazing !!! Jai Hind - Jai Aam Adami

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  5. विद्रोह नहीं.. क्रान्ति है...जूनून है ये...
    मान ही लो भीड़ नहीं जनमत.. जन-समूह है ये..

    उम्दा है ये आव्हान! ये अलख! काश कान में कडवा तेल डाले बैठी इस सरकार को ये क्र्न्दन सुनाई तो पडे.

    इसी तरह अलख जगाओ. इस भीड को जनमत में तब्दील करो.

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  6. good one, nice blog, keep it up
    -@akhandhindustan

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  7. Dear Suchita,

    Carry on with your good work. This does strike a cord. Hope many more will read & appreciate it.

    God Bless

    Good Luck

    Sincerely
    Anil Kohli

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  8. I m happily pleased reading poem in Hindi, it gives best expression (or rather i can better understand :P)

    The poem is simply amazing,
    I had coined a quote during 1st Anna fast - "Aaj Jaage ho toh firse Sona nahi, Yeh badalne ka atma Vishwas jo paya hai, netao ke samne Khona nahi" - ur poem explains this in so much better way - ots awesome ... keep writing

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  9. Shuchita,
    This is an excellent poem, and our blessings are with you to continue writing and bringing your thoughts to the reader through such wonderful efforts,
    warm regards,

    Bhaiya and Bhabhi

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  10. that's what i call thoughts of a flying pigeon....nicely penned..it's very moving!

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  11. Vandemataram Shuchita,excellent spontaneous outpouring straight from the heart!! keep it up!@kuckoo54

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  12. very nice and impressive words.....

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  13. Amazingly worded for an apt occasion. Annaji would be immensely pleased to be a recipient of this wonderful yet strongly worded poem. Kudos to you and keep it up.

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  14. very nice. you should write regularly.

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  15. Hi
    read ur poem.Liked the expressions "bheed nahin jan samuh hai ye....
    May I say:
    nahin apraadh unka, hum hi ne aadat unhe daali
    bhula dala chaman ko jab bana kerke unhe maali?
    utha hai shor charon ore jo,
    hai cheekh phoolon ki
    na maslo aur,ke hum vijay maalaain nahin khaali
    hain gaddaron,luteron ke liye kaanto bhari daali

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  16. Thanks to all of you(Shekharji, Prashantji,Raghunathji,Anilji,Ajoy kumarji, @Kuckoo54,Hiteshji,Gajananji,Anjuji, @DotARP,@Akhand Hindustan, Yogeshji, Prashant uncle, Bhaiya n bhabhi,Pratik Gitai n all those I forgot)to take out time and post comments..Keep the spirit Alive! Vandematram!
    Regards, Shuchita.

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