Friday, 22 July 2011

आहूति (Aahooti) by Shuchita.

प्रेम को नफरत में बदल देता है यह जहाँ ,
जिस हृदय की भूमि पर विश्वास उपजता हो
शक के बीज बो देता है ये वहां |
श्रद्दा के मंदिर में ,
प्रेम के अमृत में ,
अविश्वास का  ज़हर मिला देता है ये जहाँ,
जीने का सहारा,
दिल का सकूं,
सब तो छीन लेता है ये कठोर जहाँ !
प्रेम को क्रोध का रूप देना,
आस्था को डिगाना ,
रिश्तों को व्यापार बतलाना 
सभी में पारंगत है ये जहाँ !
कुछ करना है तो दुनिया दारी के खेल में न फसें  
स्वयं को,स्वयं के अहम को, निष्ठा की ज्वाला में आहूत करें
तभी श्रद्दा , विश्वास , आस्था के बंधन निभा पाएंगे 
तभी मानव जीवन को सबल व समर्थ बना पाएंगे !



3 comments:

  1. It's good...keep going..:)

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  2. Suchita Ji,

    acchi lekhni hai aapki, Sadhuwaad.

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  3. This another fascinating and tantalizing poetry Shuchita. Brilliant as it is, let me take a quote from William Blake:-
    "Without contraries is no progression. Attraction and repulsion, reason and energy, love and hate, are necessary to human existence."

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