प्रेम को नफरत में बदल देता है यह जहाँ ,
जिस हृदय की भूमि पर विश्वास उपजता हो
शक के बीज बो देता है ये वहां |
श्रद्दा के मंदिर में ,
प्रेम के अमृत में ,
अविश्वास का ज़हर मिला देता है ये जहाँ,
जीने का सहारा,
दिल का सकूं,
सब तो छीन लेता है ये कठोर जहाँ !
प्रेम को क्रोध का रूप देना,
आस्था को डिगाना ,
रिश्तों को व्यापार बतलाना
रिश्तों को व्यापार बतलाना
सभी में पारंगत है ये जहाँ !
कुछ करना है तो दुनिया दारी के खेल में न फसें
स्वयं को,स्वयं के अहम को, निष्ठा की ज्वाला में आहूत करें
तभी श्रद्दा , विश्वास , आस्था के बंधन निभा पाएंगे
तभी मानव जीवन को सबल व समर्थ बना पाएंगे !
It's good...keep going..:)
ReplyDeleteSuchita Ji,
ReplyDeleteacchi lekhni hai aapki, Sadhuwaad.
This another fascinating and tantalizing poetry Shuchita. Brilliant as it is, let me take a quote from William Blake:-
ReplyDelete"Without contraries is no progression. Attraction and repulsion, reason and energy, love and hate, are necessary to human existence."