Sunday, 8 July 2018

निर्णय

निर्णय
हर बात से असंतुष्ट लोगों के लिये एक कहानी लिख रही हूँ,
ये खास तौर से विपक्ष व हमारे विश्लेषणात्मक कार्यक्रम चलाने वाले मीडिया पर चरितार्थ होती है..
एक पिता पुत्र गधे को साथ लेकर जा रहे थे, लोगों ने देखा कहा- "कितने मूर्ख है, गधा साथ में है फिर भी दोनों पैदल चल रहे है, इस पर बैठ ही जाते.."
पिता ने पुत्र से कहा तुम्हें आगे भी बहुत काम करने है, तुम बैठ जाओ.. पुत्र गधे पर बैठ गया जरा ही चले थे कि दूसरे ने कहा-"अरे कैसा नालायक बेटा है..पिता को पैदल चला रहा है खुद गधे पर बैठा है.."
पुत्र ने पिता को गधे पर बैठा दिया स्वयं पैदल चलने लगा..आगे चले तो सुनने को मिला-"अरे कैसा पिता है? खुद गधे पर बैठ गया बेटा पैदल जा रहा है..अरे गधा साथ है दोनों ही सवारी कर लेते.."
दोनों ने सोचा ये भी करके देख लें..दोनों गधे पर सवार हो गये..आगे चले तो सुनने को मिला-"हे राम! कैसे धूर्त हैं! जरा इंसानियत नही..गधा भी तो आखिर जीव है वो भी तो धकता है.. अच्छे खासे हैं...क्या, दोनों पैदल नही चल सकते गधे के साथ साथ?"
अंत में उसी स्थिति में आ गये पर लोगों को चैन कहां?

निर्णय सदैव, समय, वातावरण, स्थान और परस्थिति के अनुसार लिया जाता है.. दूसरे के विवेक के आधार पर नहीं..
हर बात पर तर्क-वितर्क करने में कोई समझदारी नहीं...

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