Thursday, 13 May 2021

कौन मिटाये उसे जिसे वो राख लिया

कौन मिटाये उसे जिसे वो राख लिया

सब दुख दूर हुए जब तेरा नाम लिया....



13 मई 2008...
कौन भूल सकता है उस संध्या को..
हमारा वर्षों तक नियम रहा हर मंगलवार संगानेरी गेट स्थित हनुमान जी के दर्शन करना और श्री वेंकटेश्वर स्वामि जी की आरती में सम्मलित होना... 




व्यस्त मुख्य बाज़ार होने के कारण जौहरी बाज़ार में पार्किंग मिलना कठिन कार्य है... पर हम क्यूंकि वर्षों से जा रहे थे इसलिए आस-पास के लोग मानो परिवार ही बन गए थे।  माँ बन्दरों को केले इत्यादि सदा से दिया करती थी.. जहां कचरे के डिब्बे में वो बम विस्फोट हुआ था... बिल्कुल उससे सटकर ही हम अपनी कार पार्क करते थे।  क्यूंकि जो फलवाली मालन आंटी वहां टोकरी में फल लेकर बैठती थी, वो हमें देखते ही मुस्कुराकर, अपना टोकरा उठाकर साइड कर लेती, मेरी कार पार्क करने के लिए जगह बना देती। बन्दरों के लिए केले देकर कहती थी,  बाकी फल निकालकर रखती हूँ... आप दर्शन कर के आ जाओ।
उस दिन भी मंगलवार था..  हम ठीक जब बम्ब विस्फोट हुआ वही होते... और अगर ऐसा होता तो शायद आज मैं किसी और लोक में होती.. पर कहते हैं  ना "मरण और परण" का स्थान और समय नियति निर्धारित होता है। जिसकी जितनी डोर प्रभु  ने लिखी है वो कम ज़्यादा नहीं की जा सकती।
वर्षों का नियम हमने कभी नहीं तोड़ा था पर 13 मई 2008 को परिस्थिति कुछ ऐसी हुई कि हम घर से मंदिर के लिए निकल कर भी वापिस लौट आए... प्रभु बचाने के लिए भी किसी न किसी को कारक बनाते हैं। दरअसल हुआ यूं कि
माँ की बचपन में साथ पढ़ी सहेली, मेरी मौसी, 
जिन्हें माँ स्वयं भी 35 साल बाद पुनः संपर्क में आयी थी वो हमारे घर में थी। माँ को 11th May को अचानक अपनी सहेली की याद आयी... मैं उन्हें नहीं जानती थी पर फिर भी बड़ी मुश्किल से मैंने माँ की एक दूसरी सहेली को ढूँढ निकाला.. उनसे मौसी का नंबर मिला.. फोन किया तो पता चला मौसी की financial condition अच्छी नहीं रही है और उन्हें कैंसर detect हुआ है.. वो इलाज के लिए जयपुर आना चाहती थीं पर असमंजस में थीं... माँ ने बात की,  हमने हमेशा की तरह पापा से विषय कहा और तय हुआ कि हम उनके गांव जाकर उन्हें लाकर उनका इलाज करवायेंगे। Evening में महावीर कैंसर hospital में doctor uncle से एक दिन बाद का appointment लिया.. कार चलाने का मुझे शौक रहा है तो दूसरे ही दिन सुबह हम लगभग 200 km से ज़्यादा drive कर टूटी फूटी सड़क पर उछलते हुए मौसी के घर, उनके गांव पहुंचे। She was bed ridden.. उनकी reports और उन्हें साथ लिया और हम सह परिवार उसी दिन वापिस अपने घर पहुंचे... 13 की सुबह doctor  uncle  को दिखाकर घर लौटने में दोपहर हो गई।
क्यूंकि मौसी bedridden थी, और उनकी सेवा के लिए उस वक्त घर में कोई नहीं होता। माँ मंदिर नहीं जाना चाहती थीं और पापा का भी यही खयाल था।  वैसे भी माँ-पापा एक सिक्के के दो पहलू हैं और उनका collective decision same होता है।
मैं पिछले दो दिनों में थक गई थी और झुंझला भी उठी थी क्यूंकि उनके relatives, सब दो दिन से lipservice में लगे थे। स्वभाव से मैं थोड़ी तो जिद्दी हूँ ही... इतनी भी महान नहीं.. सच में सिद्धांतो पे चलना कठिन होता है। मैं माँ से उनके बड़े हृदय के लिए लगभग उलझ गई थी, ये कहकर की आप दोनों के सेवा भाव की वजह से हमरा मंदिर का नियम टूट जायेगा...पापा बोले बेटा भगवान तो कर्म देखते हैं- आरती से ही थोड़ी खुश होंगे। अब हमेशा की तरह सब कहकर माँ पापा ने decision मुझ पर छोड़ दिया। मौसी बोली हो आओ मंदिर...

मुझ पर स्वार्थ हावी था...पापा और माँ की बात को नकारते हुए मैंने कार निकाल ली... 

माँ कुछ नहीं बोली, बस मेरी ओर देखा.. मानो पूछ रही हो- बचपन से यही सिखाया है मैंने तुझे... मैंने गाड़ी घर के बाहर निकाली फिर driveway में रख दी... मुझे माँ पापा की आँखों में असहमति देख, लज्जा आ गई थी।  घर में आकर सबको मनाने के लिए मैंने कहा- चाय बनाते हैं, मंदिर...मौसी जब ठीक हो जाएंगी, तब चलेंगे। माँ की आँखों में चमक लौट आयी...

हमने चाय पी ही थी की.. फोन बजा- आवाज आयी "आप सब ठीक हो??? TV on करो मंदिर के पास bomb blast हुआ है "
हमारे सभी स्वजनों को पता था कि हम वही होंगे। एक के बाद एक फोन यही पूछने के लिए बज रहे थे।
जयपुर पहली बार इतना देहला था। SMS जहां से internship की थी,  वहां सब emergency mode में थे। कई व्यथित चेहरे देखे। हमने भी थोड़ा थोड़ा योगदान किया जो हमारा कर्तव्य था।

पर हाँ सही कहा है हमारे धर्म में कि अच्छे कर्मों का फल अवश्य ही मिलता है। 

मानव सेवा से बढ़कर कोई और सेवा नहीं।

कभी का किया कभी आड़े आता है। 

नियम टूटा साँसों की डोर टूटने से बच गई..

और माँ पापा का favorite dialogue कि हमारी
duty थी सही गलत के बीच का फर्क समझने की, अब बच्चे बड़े हो गए हैं.. कोई उंगली पकड़ थोड़ी चलाएंगे। अब जीवन तेरा है, निर्णय भी तेरे होने चाहिए। सही चुनेगी तो हमें अपनी संतान पर गर्व होगा और तुझे पीछे मुड़कर देखने पर कभी अफसोस नहीं होगा। बिना जताए काम करो । सही सिखाने की बिल्कुल सही style है। 

आज भी  इसलिए लिखा क्यूंकि इस आपदा में हम विश्वास खोने लगे हैं। जो हमने निष्काम कर्म भाव सीखा है वो ही हमें इस आपदा से भी बाहर निकालेगा।  प्रभु पर आस्था रखिए!!

"If he brings to it.. he will let us sail through it." He is an amazing director of a movie called life!!


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